-मानसी मानस
भिंभौरी,तह.-भिंभौरी,बेरला
जिला-बेमेतरा,छ.ग.
किसी मन को,मन ही मन में ढूंढे मन,
वो मिले न मिले,उसे ही छूए मन।
उफ़!ये मन जानता है,
कि अब फिर न वो मिले मन।
संभल जाए,रोको फिर उधर जाए,
कितनी दफा फिर-फिर आता मन।
अहा! न हो अब मसला कोई,
मसलन उसी के ख़याल में, खो जाता मन!
ढूंढ ले च़राग कोई,जो अंधेरे को मिटा दे,
मशाल ऐसा तो कोई जलाता मन।
बूझा न दे मन मेरा,गैर कोई सिर्फ़ फूंक से
कभी मद्धम,कभी तेज,कभी धीमा जलकर
रोशनी का पता अंधेरों को बताता मन!
घूप्प! अंधेरा,अंधेरे में कभी-कभी डर जाता मन
मत डर ऐ मन ! कि अब दिन नहीं रहे डरने के
अंधेरे को, रोशनी से दूर भगाता मन।
काश! एक ज्ञानदीप मन के भीतर भी जलाता मन!
-मानसी मानस