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आखिर आज तक क्यों नहीं बन पाई कोई भी महिला राष्ट्रपति? : अमेरिका के लोकतंत्र का अधूरा पक्ष

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अमेरिका में महिला राष्ट्रपति का इंतजार: एक लोकतांत्रिक महाशक्ति में लैंगिक समानता का प्रश्न

आखिर आज तक क्यों नहीं बन पाई कोई भी महिला राष्ट्रपति? : अमेरिका के लोकतंत्र का अधूरा पक्ष
Gossipbharat.com – राष्ट्रपति पद के बेहद करीब पहुँचने के बाद हारी हिलेरी क्लिंटन और कमला हैरिस

1788 से शुरू हुए अमेरिकी चुनावों में आज तक किसी महिला को नहीं मिला सर्वोच्च पद, जबकि कई अन्य देश दे चुके हैं नेतृत्व की कमान

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महिला राष्ट्रपति का न होना: अमेरिका के लोकतंत्र का अधूरा पक्ष

US ELECTION 2024: अमेरिका, जिसे दुनिया की सबसे पुरानी और प्रमुख लोकतांत्रिक शक्तियों में से एक माना जाता है, के राष्ट्रपति पद पर आज तक कोई महिला नहीं पहुंच सकी है। 1788-89 में जब अमेरिका में पहला राष्ट्रपति चुनाव हुआ, तब से लेकर आज तक सैकड़ों महिलाएं इस पद के लिए अपना दावा पेश कर चुकी हैं। 1872 में विक्टोरिया वुडहुल पहली महिला उम्मीदवार बनीं, जिन्होंने राष्ट्रपति बनने का सपना देखा। इसके बाद भी कई महिलाएं राष्ट्रपति पद की दावेदार बनीं, लेकिन किसी को भी चुनाव जीतकर सर्वोच्च पद पर बैठने का अवसर नहीं मिला।

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हालांकि 2020 में कमला हैरिस का उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचना महिला सशक्तिकरण के नजरिए से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि था, लेकिन राष्ट्रपति पद की दौड़ में अभी तक किसी महिला को सफलता नहीं मिली। डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन 2016 में इस लक्ष्य के बेहद करीब पहुंच गई थीं, जब उन्होंने पॉपुलर वोट में डोनाल्ड ट्रंप से करीब 28 लाख अधिक वोट हासिल किए थे। लेकिन चुनाव प्रणाली के कारण ट्रंप ने इलेक्टोरल कॉलेज में बहुमत हासिल कर राष्ट्रपति पद पर कब्जा कर लिया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि महिला उम्मीदवारों के लिए रास्ता न केवल कठिन है, बल्कि चुनावी प्रणाली की चुनौतियां भी इसमें बड़ी बाधा हैं।

अन्य देशों का नेतृत्व में महिलाओं को प्राथमिकता

अमेरिका का यह रुख इसलिए और भी ध्यान आकर्षित करता है, क्योंकि विश्व के कई अन्य देशों ने अपने शीर्ष पदों पर महिलाओं को नेतृत्व सौंपा है। श्रीलंका की सिरीमावो भंडारनायके 1960 में दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। भारत में 1966 में इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया और उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता से भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ी। इसी प्रकार, पाकिस्तान ने भी बेनजीर भुट्टो के रूप में 1988 में एक महिला प्रधानमंत्री को चुना, जो किसी मुस्लिम बहुल देश की पहली महिला नेता थीं। इन देशों का उदाहरण दर्शाता है कि महिला नेतृत्व में समाज की भागीदारी और समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

लैंगिक समानता और लोकतंत्र की सच्ची पहचान

अमेरिकी लोकतंत्र को दुनिया में एक आदर्श मानक के रूप में देखा जाता है, लेकिन सर्वोच्च पद पर किसी महिला का न होना इस लोकतांत्रिक व्यवस्था की सीमाओं को उजागर करता है। कई विद्वानों का मानना है कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी न केवल लोकतंत्र में जनता का विश्वास बढ़ाती है बल्कि इससे सत्ता की वैधता और संवेदनशीलता में भी वृद्धि होती है। राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनती है, जिससे अधिक महिलाएं राजनीति में शामिल होने के लिए प्रेरित होती हैं।

महिला राष्ट्रपति का महत्व: समाज और राजनीति में सकारात्मक बदलाव

अमेरिका में महिला राष्ट्रपति का न होना केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौती को भी दर्शाता है। देश की राजनीति में पितृसत्तात्मक मानसिकता की मौजूदगी और लैंगिक भेदभाव एक बड़ा कारण है कि महिलाएं अब तक इस सर्वोच्च पद तक नहीं पहुंच पाई हैं। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी और उनके नेतृत्व कौशल की प्रशंसा ने बदलाव की संभावना को जरूर मजबूत किया है।

एक ऐतिहासिक कदम की आवश्यकता

आज के समय में, अमेरिका के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह लैंगिक समानता और विविधता को प्रोत्साहन दे और राष्ट्रपति पद पर महिला के आसीन होने के मार्ग को सुगम बनाए। इस दिशा में एक महिला राष्ट्रपति का चुना जाना एक ऐतिहासिक कदम होगा, जो न केवल अमेरिकी समाज में लैंगिक समानता के प्रति विश्वास को मजबूत करेगा बल्कि पूरी दुनिया में समानता और समान अधिकारों के संदेश को और मजबूती प्रदान करेगा।

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