अमेरिका की ‘गोल्ड कार्ड’ वीजा स्कीम: भारतीयों पर क्या होगा असर?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमीर निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा स्कीम की योजना बनाई है। अगर यह स्कीम लागू हो जाती है, तो इससे अमेरिका में स्थायी निवास पाने की कोशिश कर रहे भारतीय पेशेवरों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। आइए जानते हैं कि यह स्कीम कैसे काम करेगी और भारतीयों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
क्या है ‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा स्कीम?
ट्रंप प्रशासन की यह नई योजना अप्रवासियों को निकालने और अमीरों को बसाने की नीति पर आधारित है। इसमें $5 मिलियन (लगभग 43.54 करोड़ रुपये) का निवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अमेरिकी निवास परमिट (ग्रीन कार्ड) मिल सकता है। यह मौजूदा EB-5 वीज़ा प्रोग्राम की जगह लेगा, जो अमेरिका में $800,000-$1,050,000 के निवेश और 10 नौकरियां पैदा करने की शर्त पर विदेशी निवेशकों को ग्रीन कार्ड देता था।
‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा के तहत:
- निवेश की न्यूनतम सीमा पांच गुना बढ़ाकर $5 मिलियन कर दी गई है।
- कोई रोजगार सृजन की शर्त नहीं होगी, जिससे यह प्रक्रिया आसान हो जाएगी।
- यह अमेरिकी निवास पाने का तेज़ और सरल तरीका बन सकता है।
भारतीयों पर प्रभाव
- ग्रीन कार्ड का इंतजार बढ़ेगा
- भारतीय पेशेवर पहले से ही H-1B वीज़ा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं और ग्रीन कार्ड के लिए दशकों तक इंतजार कर रहे हैं।
- ‘गोल्ड कार्ड’ स्कीम से अमीर निवेशकों को प्राथमिकता मिलने से कुशल भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में स्थायी निवास की राह और कठिन हो जाएगी।
- सिर्फ सुपर-रिच भारतीय ही कर सकेंगे आवेदन
- इस वीज़ा के लिए पूरा भुगतान नकद करना होगा, जबकि EB-5 के तहत आवेदक ऋण या फंड पूल कर सकते थे।
- इसका मतलब है कि सिर्फ भारत के शीर्ष बिजनेस टायकून और सुपर-रिच लोग ही इस वीज़ा के लिए योग्य होंगे।
- H-1B वीज़ा धारकों को विकल्प मिलेगा
- जो भारतीय पहले से ही H-1B वीज़ा पर अमेरिका में हैं और $5 मिलियन का निवेश कर सकते हैं, वे ‘गोल्ड कार्ड’ के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- हालांकि, यह विकल्प केवल बहुत ही अमीर भारतीयों के लिए खुला होगा।
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ट्रंप की ‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा योजना अमेरिकी इमिग्रेशन सिस्टम को पूरी तरह व्यवसायिक बनाने की ओर बढ़ रही है। यह उन निवेशकों के लिए फायदेमंद होगी जो अमेरिका में बिना किसी देरी के स्थायी निवास चाहते हैं। लेकिन भारतीय आईटी पेशेवरों और मध्यम-स्तर के निवेशकों के लिए यह मुश्किलें बढ़ा सकती है, क्योंकि उनकी ग्रीन कार्ड की प्रतीक्षा सूची और लंबी हो सकती है।