बांधकर रखा मरीज, टांके का ₹40 हजार बिल! डॉक्टर ने कहा- याद नहीं कितने पैसे लिए
- दंतेवाड़ा में 1408 दिन एब्सेंट रहे डॉक्टर की नई करतूत सामने आई
दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा ज़िले में एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। 1408 दिनों तक सेवा से अनुपस्थित रहे डॉक्टर देवेंद्र प्रताप पर अब जगदलपुर के श्री बालाजी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में मजदूर को बंधक बनाने का सनसनीखेज आरोप सामने आया है। पीड़ित का कहना है कि मामूली टांका लगाने के एवज में ₹40,000 का बिल थमा दिया गया और जब वह पैसा नहीं दे सका, तो अस्पताल से बाहर नहीं जाने दिया गया।
क्या है पूरा मामला?
करीब तीन साल पुरानी इस घटना को लेकर जगदलपुर के पेट्रोल पंप संचालक संदीप पारेख ने बताया कि उनके यहां काम करने वाला मजदूर डीहू राम विश्वकर्मा हाथ में चोट लगने के बाद अस्पताल में भर्ती हुआ था। एक दिन इलाज के बाद जब डिस्चार्ज की बारी आई, तो अस्पताल प्रशासन ने ₹40,000 का बिल थमा दिया। मजदूर के पास पैसे नहीं थे, इसलिए उसे अस्पताल से बाहर जाने नहीं दिया गया।
संदीप ने जब डॉक्टर देवेंद्र प्रताप से बात की तो वो नहीं माने। मामला तब शांत हुआ जब पत्रकार, जनप्रतिनिधि और प्रशासन के हस्तक्षेप से मजदूर को रिहा कराया गया।
डॉक्टर बोले- “याद नहीं कितने पैसे लिए”
जब मीडिया ने डॉक्टर देवेंद्र प्रताप से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “मुझे बस इतना याद है कि कोई व्यक्ति आया था। थोड़ी बहुत बहस तो जरूर हुई थी, लेकिन कितने पैसे लिए, ये मुझे याद नहीं है।” डॉक्टर और उनकी पत्नी मिलकर यह प्राइवेट अस्पताल चला रहे हैं।
नर्सिंग होम एक्ट नोडल अधिकारी का खुलासा
नोडल अधिकारी डॉ. श्रेयांश जैन ने पुष्टि की है कि अस्पताल डॉक्टर दंपती का ही है और यह उनकी पत्नी के नाम से रजिस्टर्ड है। सवाल यह भी उठ रहा है कि इतने विवादों और लंबे समय तक एब्सेंट रहने के बावजूद डॉक्टर को BMO (ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर) जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कैसे दी गई?
नियम क्या कहते हैं?
सरकारी नियमों के अनुसार, अगर कोई अधिकारी 3 साल तक लगातार सेवा से अनुपस्थित रहता है, तो उसे त्यागपत्र दिया हुआ माना जाता है। बावजूद इसके, उप संचालक (स्वास्थ्य) के एक पत्र के आधार पर CMHO ने उन्हें गीदम में BMO पद पर ज्वाइनिंग दे दी।
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कांग्रेस नेता ने उठाए सवाल
ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष अनिल कर्मा ने मामले में जवाबदेही तय करने की मांग की है और कहा कि विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए। पत्रकार अजय श्रीवास्तव और बीजेपी नेता सुरेश गुप्ता ने भी इस मामले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है।
एक ओर राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की बात करती है, वहीं ऐसे डॉक्टरों की पुनर्नियुक्ति और पुराने मामलों की अनदेखी पूरे तंत्र पर सवाल उठाती है। क्या बंधक बनाने और ओवरबिलिंग जैसे गंभीर मामलों पर कार्रवाई होगी या एक बार फिर यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा?