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सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को राहत दी, पुलिस जांच पर लगाया रोक, दावा कि संगठन ने उनकी बेटियों को “ब्रेनवॉश” कर साध्वी बना दिया है

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  •  दावा किया कि संगठन ने उनकी बेटियों को “ब्रेनवॉश” कर साध्वी बना दिया है
मद्रास हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर को सद्गुरु जग्गी वासुदेव से एक सख्त सवाल किया। जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम और वी शिवाग्नानम की पीठ ने पूछा कि सद्गुरु महिलाओं को मोह-माया से दूर रहने के लिए क्यों प्रेरित करते हैं, जबकि उनकी अपनी बेटी शादीशुदा है। यह टिप्पणी उस संदर्भ में आई थी जब रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने आरोप लगाया था कि सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों, लता और गीता, को जबरन संन्यासिनों की तरह रहने पर मजबूर किया है।
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Sadhguru Isha Foundation: सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन हाल ही में कई विवादों का केंद्र रहा है। इस विवाद की जड़ में एक हैबियस कॉर्पस याचिका है, जिसे रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने दायर किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियाँ, लता और गीता, को जबरदस्ती ईशा फाउंडेशन में सन्यास लेने के लिए प्रेरित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2024 को इस मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और मामले को अपने पास ट्रांसफर कर लिया। इसके साथ ही, तमिलनाडु पुलिस को हाईकोर्ट द्वारा मांगी गई स्थिति रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया गया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि पुलिस को फाउंडेशन में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती​.

महिला संन्यासियों की गवाही

ईशा फाउंडेशन ने स्पष्ट किया है कि लता और गीता, जो वर्तमान में 42 और 39 वर्ष की हैं, 2009 में आश्रम में शामिल हुई थीं। उस समय उनकी उम्र क्रमशः 24 और 27 वर्ष थी। फाउंडेशन का कहना है कि दोनों महिलाएं अपनी इच्छा से वहां रह रही हैं और उन्हें किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला गया है।

इस मामले की पृष्ठभूमि में, एक रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एस. कामराज ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियाँ, जिनकी उम्र 42 और 39 वर्ष है, इशा फाउंडेशन के आश्रम में जबरदस्ती रहीं हैं। उन्होंने दावा किया कि संगठन ने उनकी बेटियों को “ब्रेनवॉश” कर साध्वी बना दिया है और उनके परिवार से उनका संपर्क पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में, दोनों महिलाओं ने कोर्ट को बताया कि वे अपनी इच्छा से आश्रम में रह रही हैं और उन्हें वहां से बाहर जाने की पूरी स्वतंत्रता है। इस दौरान, एक महिला ने बताया कि उसने हाल ही में हैदराबाद में एक 10 किलोमीटर की मैराथन में भाग लिया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके पास अपनी जीवनशैली का नियंत्रण है।

अब, यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधीन है, और अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि तमिलनाडु पुलिस को एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इस मामले की अगली सुनवाई 18 अक्टूबर 2024 को होगी।

इस मामले में, अदालत के हालिया फैसले के बाद, आश्रम में तैनात पुलिसकर्मी भी वहां से चले गए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय ने फाउंडेशन की स्थिति को देखते हुए पुलिस की कार्रवाई को अनावश्यक मानते हुए रोक दिया है। फाउंडेशन के अधिकारियों ने यह भी बताया है कि दोनों महिलाएं पिछले कई वर्षों से आश्रम में आत्म-ज्ञान की साधना कर रही हैं और उनके जीवन का यह विकल्प पूरी तरह से स्वेच्छा से लिया गया है।

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मद्रास हाईकोर्ट के आदेश

मद्रास हाईकोर्ट ने 1 अक्टूबर को सद्गुरु जग्गी वासुदेव से एक सख्त सवाल किया। जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम और वी शिवाग्नानम की पीठ ने पूछा कि सद्गुरु महिलाओं को मोह-माया से दूर रहने के लिए क्यों प्रेरित करते हैं, जबकि उनकी अपनी बेटी शादीशुदा है। यह टिप्पणी उस संदर्भ में आई थी जब रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने आरोप लगाया था कि सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों, लता और गीता, को जबरन संन्यासिनों की तरह रहने पर मजबूर किया है।

हालांकि, कामराज की बेटियों ने कोर्ट में पेश होकर स्पष्ट किया कि वे अपनी मर्जी से इस फाउंडेशन में रह रही हैं। उनकी उम्र अब क्रमशः 42 और 39 वर्ष है, और उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने जीवन का यह विकल्प पूरी स्वेच्छा से चुना है। यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि पारिवारिक तनाव और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है.

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