तंत्र-मंत्र से बचाने वाला त्योहार! क्यों खास होता है सवनाही तिहार?

बेमेतरा(छत्तीसगढ़): आषाढ़ के आखिरी सप्ताह और सावन के पहले रविवार से शुरू होने वाला पारंपरिक सवनाही तिहार अब पूरे छत्तीसगढ़ के गांवों में उल्लास और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। यह त्योहार न सिर्फ धार्मिक परंपरा का हिस्सा है, बल्कि सामाजिक समरसता और सामूहिक अवकाश की अनोखी मिसाल भी है।
कोटवार की मुनादी, गांव में सन्नाटा
हर शुक्रवार शाम को गांव का कोटवार मुनादी करता है कि रविवार को कोई खेत या व्यवसायिक कार्य नहीं होगा। यह सूचना मिलते ही ग्रामीण अपनी तैयारी में लग जाते हैं। रविवार को पूरा गांव कामकाज से विराम ले लेता है—ना खेतों में हल चलेगा, ना बाजार खुलेगा।
रात भर पूजा, देवी से रक्षा की कामना
शनिवार की रात गांव के बैगा (पुजारी) और राऊत समुदाय के लोग गांव के बाहर स्थित सियार (सरहद) या देव स्थान पर रातभर रुकते हैं। वे सवनाही देवी की पूजा करते हैं जिसमें नारियल, नींबू, सिंदूर, काली मुर्गी, झंडे और मिट्टी के बर्तन जैसे परंपरागत सामान चढ़ाए जाते हैं।
घरों की सुरक्षा भी जरूरी
देवी की पूजा के साथ-साथ ग्रामीण अपने घरों के दरवाजों पर गोबर से बनी मानव आकृति बनाते हैं। मान्यता है कि यह आकृति जादू-टोना, बुरी नजर और बीमारियों से सुरक्षा देती है। लाल, काले और सफेद झंडों को खेतों और घरों के पास गाड़ा जाता है जो बुरी शक्तियों को दूर रखने का प्रतीक माना जाता है।
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क्यों जरूरी है यह तिहार?
इस अनूठे त्योहार का उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और मनोवैज्ञानिक विश्राम भी है। पूरा गांव एक साथ अवकाश लेकर एकता और सहयोग का संदेश देता है। साथ ही यह माना जाता है कि इससे खेती-किसानी में बाधा नहीं आती और पशु-पक्षी भी सुरक्षित रहते हैं।
ये परंपरा सिर्फ तीज-त्योहार नहीं, बल्कि गांव की सुरक्षा और एकता का प्रतीक है।