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रतन टाटा का अंतिम संस्कार: पारसी होते हुए भी क्यों किया जा रहा है हिंदू रीति से अग्निदाह?

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  • रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति से: पारसी समुदाय की परंपराओं में बदलाव की बड़ी वजहें

मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुआ 86 वर्षीय उद्योगपति का निधन, वर्ली श्मशान घाट पर होगा अंतिम संस्कार

,86 की उम्र में रतन टाटा का निधन: देश ने खोया अपना सबसे बड़ा प्रेरणास्त्रोत"
Gossipbharat.com- True inspiration of India “RATAN TATA”

 रतन टाटा का निधन: एक युग का अंत

भारत के प्रमुख उद्योगपति और टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। रतन टाटा को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों, पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2008) से सम्मानित किया गया था। उनके निधन से उद्योग और समाज के हर क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है।

रतन टाटा के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर एक विशेष चर्चा हो रही है, क्योंकि वे पारसी समुदाय से थे, लेकिन उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार की जाएगी। यह निर्णय उनके परिवार और समुदाय के बीच उठे बदलावों की ओर इशारा करता है, जो पारसी परंपराओं और आज की परिस्थितियों के बीच संघर्ष को दर्शाता है।

अलविदा रतन टाटा: जो देश के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे

पारसी समुदाय और अंतिम संस्कार की परंपरा

पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के तरीके अन्य प्रमुख धर्मों से काफी अलग होते हैं। पारंपरिक रूप से, पारसी अपने मृतकों को जलाते या दफनाते नहीं हैं। इसके बजाय, शव को “टावर ऑफ साइलेंस” या दखमा में रखा जाता है, जहां मांसाहारी पक्षियों द्वारा शव को प्राकृतिक रूप से नष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया को “दोखमेनाशिनी” कहा जाता है, जिसमें शव को खुले में छोड़ दिया जाता है ताकि गिद्ध और अन्य मांसाहारी पक्षी उसका उपभोग कर सकें।

यह परंपरा लगभग 3,000 साल पुरानी है और इसे आकाश में दफनाने की प्रक्रिया के रूप में भी जाना जाता है। पारसी समुदाय इस प्रक्रिया को पवित्र मानता है क्योंकि इसे प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की दिशा में देखा जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में, इस परंपरा को निभाने में कई चुनौतियां आई हैं।

पारसी परंपराओं में हो रहा बदलाव

पारसी समुदाय की परंपरा में परिवर्तन का मुख्य कारण है प्राकृतिक संसाधनों की कमी। विशेष रूप से गिद्धों और अन्य मांसाहारी पक्षियों की घटती संख्या के कारण, पारसी समुदाय अपने मृतकों के अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव करने के लिए मजबूर हो रहा है। साथ ही, शहरीकरण और टावर ऑफ साइलेंस के लिए पर्याप्त स्थान की कमी ने भी पारंपरिक रिवाजों को निभाना मुश्किल कर दिया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में दुनिया भर में पारसियों की संख्या 2 लाख से भी कम है। मुंबई जैसे बड़े शहरों में पारसी समुदाय के लिए अपने पारंपरिक अंतिम संस्कार की व्यवस्था करना अब संभव नहीं रह गया है। इन चुनौतियों के कारण, कई पारसी परिवार अब आधुनिक और वैकल्पिक तरीकों को अपना रहे हैं, जिनमें दाह संस्कार और दफनाने की प्रक्रिया शामिल हैं।

 रतन टाटा का अंतिम संस्कार: हिंदू रीति से क्यों?

रतन टाटा का अंतिम संस्कार वर्ली श्मशान घाट में हिंदू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा, जिसमें इलेक्ट्रिक अग्निदाह की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, उनके पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा जाएगा और पुलिस द्वारा बंदूक की सलामी दी जाएगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि उनके अंतिम संस्कार में भारतीय रीति-रिवाजों के साथ ही उनके देश के प्रति योगदान का भी सम्मान किया जाएगा।

रतन टाटा के अंतिम संस्कार का निर्णय उनके परिवार और व्यक्तिगत इच्छाओं पर आधारित हो सकता है। हालांकि वे पारसी समुदाय से थे, लेकिन आज के समय में पारसी समुदाय की परंपराओं में बदलाव और आधुनिक परिस्थितियों के अनुरूप अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को अपनाना जरूरी हो गया है।

अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली श्मशान घाट पर 

आज, 10 अक्टूबर 2024 को देश के प्रमुख उद्योगपति और समाजसेवी रतन टाटा का अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली श्मशान घाट पर हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया जा रहा है। 86 वर्ष की आयु में उनका निधन मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुआ, जहाँ उन्हें पिछले कुछ दिनों से भर्ती किया गया था। रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। उनके निधन की खबर आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा हुआ है, और प्रमुख हस्तियों ने उनके योगदान को याद करते हुए भावुक संदेश साझा किए हैं।

रतन टाटा, जो कि टाटा समूह के चेयरमैन रहे, भारतीय उद्योग और समाज में एक अनमोल रत्न के रूप में माने जाते हैं। उन्होंने न केवल देश को व्यापार के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया, बल्कि अपने परोपकारी कार्यों से समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई और भारतीय उद्योग जगत का प्रमुख हिस्सा बना। रतन टाटा का समाज सेवा में भी बड़ा योगदान रहा। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाओं का नेतृत्व किया, जिनसे लाखों लोगों की ज़िंदगी में सुधार आया।

 देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग शामिल

आज उनके अंतिम संस्कार में देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग शामिल हो रहे हैं। प्रधानमंत्री, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री, बॉलीवुड सेलेब्रिटीज, और उद्योग जगत की कई जानी-मानी हस्तियाँ शोक व्यक्त करने के लिए मुंबई पहुँचे हैं। अंतिम संस्कार में उनके परिवार के सदस्य, करीबी मित्र, और सहयोगी भी शामिल हो रहे हैं। वर्ली श्मशान घाट के बाहर भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई है, क्योंकि रतन टाटा के चाहने वालों की बड़ी संख्या वहाँ इकट्ठा हो रही है।

आज सुबह उनके पार्थिव शरीर को ब्रीच कैंडी अस्पताल से उनके निवास स्थान पर लाया गया, जहाँ परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। इसके बाद शव यात्रा शुरू हुई, जो वर्ली श्मशान घाट पर समाप्त हुई। इस यात्रा में रतन टाटा के प्रशंसक और अनुयायी बड़ी संख्या में शामिल हुए, जो उनके अंतिम दर्शन के लिए आए थे।

प्रधानमंत्री ने कहा,

रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “रतन टाटा ने भारतीय उद्योग जगत को वैश्विक पहचान दिलाई और समाज सेवा में उनका योगदान अतुलनीय है। उनका जीवन प्रेरणादायक था और उनकी कमी हमेशा महसूस की जाएगी।” टाटा समूह के वर्तमान चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने भी कहा, “रतन सर न केवल एक महान नेता थे, बल्कि एक दयालु और विनम्र व्यक्ति भी थे। उनकी सोच और दृष्टिकोण से टाटा समूह और समाज को अपार लाभ हुआ है।”

रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए। उन्हें 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी उदारता और समाज सेवा की भावना के लिए उन्हें दुनिया भर में सराहा गया। टाटा नैनो कार, जो दुनिया की सबसे किफायती कार मानी जाती है, उनके नवाचार और आम आदमी के प्रति उनकी चिंता का प्रतीक रही है।

आज का दिन पूरे भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जब देश ने न केवल एक महान उद्योगपति बल्कि एक सच्चे समाजसेवी को खो दिया है। उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी, और उन्होंने जो मूल्य दिए हैं, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेंगे।

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