- छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के कारण फार्मासिस्टों और छात्रों के हितों की अनदेखी
छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल (Chhattisgarh State Pharmacy Council) में की गई कई प्रकार की अनियमिताएं
छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है, क्योंकि इसका नाता हमेशा फर्जीवाड़े से जुड़ा हुआ है। जब-जब स्टेट फार्मेसी काउंसिल की ओर नजरें जाती हैं, तब ये पता चलता है कि इस काउंसिल में कई प्रकार की अनियमिताएं हैं। यह काउंसिल अभी तक फार्मासिस्टों के हित के लिए कुछ भी नहीं कर पाई है। फार्मेसी विद्यार्थियों के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्टेट फार्मेसी काउंसिल ने न तो कोई योजना बनाई है, न रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया है। फार्मेसी छात्रों के लिए कोई कार्यक्रम नहीं हो पाया है और न ही उनके भविष्य के लिए कोई ऐसी नीति बनाई गई है जिससे उन्हें रोजगार के अवसर मिलें।
छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल और फर्जीवाड़ा कोई नई बात नहीं है। यहां कई ऐसे विषय उठे हैं जिनमें यह देखा गया है कि कई लोगों के मेडिकल स्टोर चल रहे हैं, जबकि उन्होंने फार्मेसी की पढ़ाई भी नहीं की है, और वे यहां कभी रजिस्टर्ड भी नहीं हुए। फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों का चयन व्यवसायिक और व्यापारी वर्ग के लोगों में से ही होता रहा है, जो कभी भी फार्मेसी विद्यार्थियों के हित में कुछ भी करने में सक्षम नहीं रहे हैं। 2023 से देखा जा रहा है कि काउंसिल के सभी निर्वाचित या मनोनीत सदस्य अक्रिय हैं और महीनों तक काउंसिल में नहीं दिखाई देते। इससे यह सवाल उठता है कि आखिर ये लोग फार्मासिस्टों के हित के बारे में कैसे सोचेंगे?
काउंसिल के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति के बाद से ही ये लोग सबसे अधिक निष्क्रिय रहे हैं। इसी कारण से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) जैसे छात्र संगठनों ने आंदोलन भी किया है, लेकिन काउंसिल का काम सुचारू रूप से नहीं चल पाया। पहले रजिस्ट्रार नहीं होने की स्थिति में भी इन सदस्यों को कोई चिंता नहीं थी। फार्मासिस्टों के लिए किसी प्रकार का अधिकारिक काम नहीं किया गया है, और न ही विद्यार्थियों के लिए कोई ठोस नीति या कार्यक्रम बनाए गए हैं। इसके विपरीत, काउंसिल के सदस्य अपने विश्वविद्यालयों में तो कार्यक्रम करते हैं, लेकिन अन्य फार्मेसी महाविद्यालयों की उन्हें कोई चिंता नहीं है।
छत्तीसगढ़ के फार्मेसी कॉलेजों की अनियमितताओं को किया जा रहा नजरअंदाज
छत्तीसगढ़ के कई फार्मेसी कॉलेजों में गंभीर अनियमितताएं देखी गई हैं। इन कॉलेजों में किराए के शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं, जो केवल निरीक्षण के समय काम आते हैं। इसका मतलब है कि कॉलेज उन लोगों के दस्तावेज़ जमा करते हैं जिन्होंने मास्टर्स की पढ़ाई की है, और इन शिक्षकों को सिर्फ कॉलेज में निरीक्षण के समय उपस्थित दिखाया जाता है। कई विश्वविद्यालय और महाविद्यालय इस प्रक्रिया में शामिल हैं, लेकिन फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष अरुण मिश्रा ने इस पर चुप्पी साध रखी है।
रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव और बिलासपुर के फार्मेसी महाविद्यालयों की अनियमितताओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या फार्मेसी काउंसिल के सदस्य इन कॉलेजों का संरक्षण कर रहे हैं?
काउंसिल का एजेंडा कम, अध्यक्ष और सदस्यों का एजेंडा ज्यादा लगता है
छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों का प्राथमिक ध्यान फार्मासिस्टों के हितों पर नहीं बल्कि अपने भत्ते और अन्य खर्चों पर रहता है। काउंसिल के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को अपने यात्रा खर्च, पेट्रोल और अन्य भत्तों का भुगतान समय पर मिल जाता है। यह देखा गया है कि काउंसिल में बैठे लोग सिर्फ कार्यक्रमों के लिए पैसा चाहते हैं, जबकि फार्मासिस्टों के हित की उन्हें कोई चिंता नहीं है।
स्टेट फार्मेसी काउंसिल में कार्यशालाओं के लिए तीन लाख की सीमा होती है, लेकिन अब इसे दस लाख तक बढ़ाने का प्रस्ताव लाया जा रहा है। परंतु, जब काउंसिल के कामकाज पर नज़र डाली जाती है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि फार्मेसी विद्यार्थियों या फार्मासिस्टों के हित में अभी तक कोई भी बड़ा कार्यक्रम या संगोष्ठी आयोजित नहीं की गई है। इससे यह समझ में आता है कि काउंसिल के सदस्यों का एजेंडा कुछ और ही है।
छत्तीसगढ़ स्टेट फार्मेसी काउंसिल में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। इस काउंसिल में वर्षों से भ्रष्टाचार और अन्य अनियमितताएं उजागर होती रही हैं, फिर भी काउंसिल में बैठे लोग पूरी तरह अक्रिय हैं। उन्हें सिर्फ अपने भत्ते और खर्चों की परवाह है। यदि जल्द ही इस काउंसिल में सुधार नहीं किए गए, तो छात्र शक्ति और राष्ट्र शक्ति के सहयोग से इसमें आवश्यक बदलाव लाए जाएंगे।
— योगेश साहू, फार्माविजन व प्रदेश कार्यसमिति अभाविप