भाई-बहनों का टकराव: संपत्ति विवाद का दिलचस्प मामला (Sibling conflict: Interesting case of property dispute)
संपत्ति विवाद: बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला (Property dispute: Important decision of Bombay High Court)

हाल ही में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक संपत्ति विवाद मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि पिता द्वारा अपने बेटे को उपहार में दी गई संपत्ति को पैतृक संपत्ति नहीं माना जाएगा। यह मामला एक भाई और उसकी बहनों के बीच उनके पिता की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुआ, जो एक डॉक्टर थे। अदालत ने इस निर्णय में यह भी बताया कि पैतृक संपत्ति को किसी भी प्रकार से उपहार में नहीं दिया जा सकता, और अगर ऐसा किया जाता है, तो वह वैध नहीं होगा।
इस मामले में, उच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू कानून के अनुसार, एक सह-हिरा (coparcener) केवल तभी संपत्ति का उपहार दे सकता है जब वह एकमात्र उत्तराधिकारी हो। यदि वह अन्य सह-हिराओं के साथ संपत्ति का स्वामी है, तो वह अपनी संपत्ति को उपहार में नहीं दे सकता। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के उपहारों को यह सुनिश्चित करने के लिए रोकना आवश्यक है कि संयुक्त परिवार की संपत्ति का विभाजन न हो।
मामला क्या है?
इस मामले में भाई ने अपने पिता से प्राप्त संपत्ति को लेकर अपनी बहनों से विवाद किया। बहनों का आरोप था कि उनके पिता ने जो फ्लैट उन्हें दिया था, वह परिवार की संयुक्त संपत्ति थी, जिसे उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद साझा करना चाहिए था। बहनों का यह भी कहना था कि भाई ने फ्लैट्स को गुपचुप तरीके से अपने नाम कर लिया था और बिना किसी को सूचित किए बेच दिया।
भाई का पक्ष
भाई ने कोर्ट में कहा कि उसे ये फ्लैट उसके पिता ने उपहार के रूप में दिए थे। उसने दावा किया कि जब यह उपहार दिया गया, तब उसकी बहनों ने इस पर कोई आपत्ति नहीं उठाई थी। उसका तर्क था कि उपहार लेने के बाद बहनों का संपत्ति पर कोई दावा नहीं बनता।
अदालत की सुनवाई
कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पिता को अपने जीवनकाल में अपने बेटे को स्व-अर्जित संपत्ति उपहार में देने का अधिकार है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे उपहारित संपत्ति को पैतृक संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता।
जज सी.एल. पंगारकर (Judge C.L. Pangarkar) ने इस संबंध में कहा कि उपहार के रूप में संपत्ति का परिवर्तन परिवार की एकता को तोड़ सकता है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत, सह-हिरा को अपनी संपत्ति का उपहार देने की अनुमति नहीं है, बल्कि उसे अपनी संपत्ति को एक वसीयत के माध्यम से ही स्थानांतरित करने की अनुमति है।
- Dispute between brothers and sisters over property rights
भाई का दावा था कि उपहार मिलने के बाद बहनों का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं बनता। अदालत ने इस तर्क को मान्यता दी और बहनों के दावे को खारिज कर दिया। जज सी.एल. पंगारकर ने कहा कि उपहार के रूप में संपत्ति का परिवर्तन परिवार की एकता को प्रभावित कर सकता है, लेकिन इस मामले में भाई का अधिकार सुनिश्चित किया गया।
अदालत के इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि यदि संपत्ति उपहार के रूप में दी गई है और इसके खिलाफ कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है, तो इसका स्वामित्व उपहार प्राप्त करने वाले व्यक्ति का होगा। यह निर्णय भविष्य में समान मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।