सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अमान्य विवाह में भी मिलेगा गुजारा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित की गई शादियों में गुजारा भत्ता देने को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। तीन न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति एएस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और एजी मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि अमान्य विवाह में भी पति या पत्नी को स्थायी भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है। हालांकि, यह पूरी तरह से केस के तथ्यों और दोनों पक्षों के आचरण पर निर्भर करेगा, क्योंकि धारा 25 के तहत राहत देना अदालत के विवेक पर आधारित होता है।
कोर्ट ने क्यों लिया यह फैसला?
यह मामला पिछले साल अगस्त में डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। इसमें सवाल उठाया गया कि क्या अमान्य विवाह में भी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 (अमान्य विवाह) और धारा 25 (गुजारा भत्ता) के बीच संबंधों की व्याख्या की। पहले के दो मामलों में इसे स्वीकार किया गया था, लेकिन पांच अन्य मामलों में इसका विरोध हुआ था।
क्या इससे कानून का दुरुपयोग होगा?
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अगर धारा 25 को अमान्य विवाहों पर लागू किया जाता है, तो इससे ‘हास्यास्पद’ परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, कोई महिला अपने पहले पति से तलाक लिए बिना किसी और से विवाह कर सकती है और फिर गुजारा भत्ता मांग सकती है। हालांकि, अदालत ने कहा कि कानून में पहले से ही ऐसे दुरुपयोग को रोकने के उपाय मौजूद हैं।
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धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण का क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई पति या पत्नी अमान्य विवाह की घोषणा की मांग कर रहा है, तो उन्हें हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण मिल सकता है, बशर्ते कि –
- मामला 1955 अधिनियम के तहत अदालत में लंबित हो।
- अदालत यह तय करे कि पति या पत्नी के पास कार्यवाही के दौरान अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है।
इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि भले ही कोई विवाह अमान्य घोषित कर दिया जाए, फिर भी उसमें गुजारा भत्ता देने का प्रावधान रहेगा। हालांकि, यह पूरी तरह से मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।