‘आज़ादी नहीं छीनी जा सकती’: सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को कड़ी फटकार, 5 लाख का जुर्माना लगाया
नई दिल्ली/लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि जमानत के बावजूद कैदी को जेल में रखने की कोई भी तकनीकी या लिपिकीय चूक स्वीकार्य नहीं है। गाजियाबाद जेल में एक कैदी को जमानत आदेश के 28 दिन बाद तक रिहा नहीं किया गया, जिसे अदालत ने गंभीर सिस्टमिक विफलता करार दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार पर 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और एनके सिंह शामिल थे, ने साफ शब्दों में कहा:
“किसी व्यक्ति की आज़ादी को तकनीकी खामी या लिपिकीय त्रुटि के नाम पर नहीं छीना जा सकता। यह कोई मामूली भूल नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता है।”
क्या है मामला:
- कैदी को कोर्ट से जमानत मिल चुकी थी, लेकिन एक उपधारा का उल्लेख न होने की वजह से 28 दिनों तक जेल में रखा गया।
- कोर्ट ने पाया कि अपराध और आरोप स्पष्ट रूप से जमानत आदेश में उल्लिखित थे, फिर भी बहाने बनाकर रिहाई टाली गई।
कोर्ट में पेश हुए अधिकारी:
- गाजियाबाद जेल अधीक्षक व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हुए।
- यूपी जेल विभाग के D.I.G. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश हुए।
- राज्य की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद के तर्क को कोर्ट ने खारिज कर दिया।
कोर्ट की दो टूक चेतावनी:
पीठ ने कहा कि यह कोई एकबारगी त्रुटि नहीं, बल्कि बड़े प्रशासनिक ढांचे की गंभीर खामी है। ऐसी घटनाएं न्याय और संवैधानिक अधिकारों के साथ खिलवाड़ हैं।
“न्यायिक आदेशों को लागू करना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों की रक्षा का हिस्सा है।”
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यह मामला न्यायपालिका के उस रुख को दर्शाता है, जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि मानी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि किसी की स्वतंत्रता को किसी बहाने से रोका नहीं जा सकता, और यदि ऐसा होता है, तो राज्य को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।