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जातिगत जनगणना 2026: आजाद भारत में पहली बार जातीय जनगणना! सरकार ने तय की दो चरणों की रणनीति

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जातीय जनगणना को लेकर ऐतिहासिक कदम: दो चरणों में होगी गणना, रिपोर्ट मार्च 2027 तक

नई दिल्ली। स्वतंत्र भारत में पहली बार जातिगत जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। मोदी सरकार ने इस महत्वाकांक्षी कदम को लेकर तैयारियां तेज कर दी हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जातिगत आधार पर दो चरणों में जनगणना कराने की योजना है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और जातिगत जानकारी जुटाई जाएगी।

भारत सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 2026 में देश की पहली व्यापक जातिगत जनगणना कराने की घोषणा की है। यह जनगणना दो चरणों में होगी:

  • पहला चरण: 1 अक्टूबर 2026 से लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में जनगणना होगी।
  • दूसरा चरण: 1 मार्च 2027 से देश के अन्य हिस्सों में जनगणना की जाएगी।

इस जनगणना में पहली बार जातियों से संबंधित व्यापक आंकड़े इकट्ठा किए जाएंगे। अब तक की जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जाति और जनजातियों के आंकड़े ही शामिल होते थे।

🔹 जातिगत जनगणना क्यों है अहम?

  • सामाजिक न्याय: इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्पष्ट पहचान संभव होगी, जिससे उनके लिए लक्षित योजनाएं बनाई जा सकेंगी।
  • नीति निर्माण: विस्तृत जातीय डेटा से बेहतर सामाजिक नीतियों का निर्माण होगा।
  • आरक्षण सुधार: यह जनगणना आरक्षण की व्यवस्था को और प्रासंगिक व व्यापक बनाने में मददगार हो सकती है।

यह पहल 2011 के बाद पहली बार जनगणना की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करेगी, और देश के सामाजिक ढांचे को आधुनिक आंकड़ों के साथ पुनर्गठित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

सरकार के तीन प्रमुख एजेंडे

मोदी सरकार तीन प्रमुख एजेंडों पर काम कर रही है:

  1. जातिगत जनगणना और सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों का संकलन
  2. 2029 तक परिसीमन (चुनाव क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण)
  3. महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करना

सरकार इन तीनों एजेंडों को एक-दूसरे से जोड़ते हुए लागू करना चाहती है ताकि लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण देने का निर्णय जातीय और सामाजिक जनसंख्या के आधार पर लिया जा सके।

परिसीमन और आरक्षण की राह

वर्ष 2002 में भाजपा सरकार ने 84वें संविधान संशोधन के जरिए वर्ष 2026 तक लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या को फ्रीज कर दिया था। इसका उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा देना था। अब यह सीमा 2026 में समाप्त हो रही है, जिसके बाद परिसीमन का रास्ता खुल सकता है।

इस बार परिसीमन जातिगत जनगणना के आधार पर करने की योजना है ताकि सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व संतुलित तरीके से सुनिश्चित किया जा सके।

महिला आरक्षण को मिलेगा आधार

हाल ही में संसद द्वारा पारित महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने के लिए परिसीमन और जनगणना की रिपोर्ट बेहद जरूरी है। सरकार चाहती है कि यह प्रक्रिया 2027 तक पूरी हो जाए ताकि 2029 के आम चुनावों में नया आरक्षण प्रारूप लागू हो सके।

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जातीय जनगणना, परिसीमन और महिला आरक्षण—ये तीनों कदम न सिर्फ सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे, बल्कि देश के चुनावी ढांचे को भी नई दिशा देंगे। सरकार की मंशा स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में हर वर्ग को उसकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए।

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