शिक्षक नहीं, तो पढ़ाएगा कौन? सरकार कहती है शिक्षा सुधरेगी, लेकिन 7127 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे
युक्तियुक्तकरण पर सरकार का दावा और ज़मीनी हकीकत
RAIPUR. सरकार ने स्कूलों और शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप बताया है। दावा है कि इससे न तो स्कूल बंद होंगे और न ही शिक्षकों की संख्या घटेगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और प्रशासनिक समन्वय बढ़ेगा। हालांकि, जमीनी हालात इस दावे के विपरीत तस्वीर पेश करते हैं।
शिक्षकों की भारी कमी:
प्रदेश के 30,700 सरकारी प्राथमिक स्कूलों और 13,149 पूर्व माध्यमिक स्कूलों में कई स्थानों पर शिक्षकों की भारी कमी है, जबकि औसत छात्र-शिक्षक अनुपात राष्ट्रीय स्तर से बेहतर बताया गया है (प्राथमिक: 21.84, पूर्व माध्यमिक: 26.2)। फिर भी:
- 212 प्राथमिक स्कूल पूरी तरह शिक्षकविहीन हैं।
- 6872 प्राथमिक स्कूलों में केवल एक शिक्षक है।
- 48 पूर्व माध्यमिक स्कूलों में भी कोई शिक्षक नहीं है।
- 255 पूर्व माध्यमिक स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक कार्यरत है।
इस प्रकार कुल 260 प्राइमरी-मिडिल स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, और 7127 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक है।
कानून की अनदेखी:
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार:
- प्राथमिक स्कूलों में 60 छात्रों तक 2 शिक्षक अनिवार्य हैं, और हर अतिरिक्त 30 छात्रों पर 1 और शिक्षक चाहिए।
- मिडिल स्कूलों में 105 छात्रों तक 3 शिक्षक + 1 प्रधानाध्यापक का प्रावधान है।
इसके बावजूद शिक्षक तैनात नहीं किए गए हैं।
आवश्यकताएं और उपलब्धता:
- प्राथमिक स्कूलों में 7,296 अतिरिक्त सहायक शिक्षक चाहिए, लेकिन केवल 3608 अतिशेष शिक्षक उपलब्ध हैं।
- पूर्व माध्यमिक स्तर पर 5536 अतिरिक्त शिक्षकों की जरूरत है, लेकिन 1762 शिक्षक ही उपलब्ध हैं।
असमान वितरण:
शिक्षकों की कमी का एक बड़ा कारण उनका असमान वितरण है:
- लगभग 1500 प्राथमिक स्कूलों में 5 या उससे अधिक शिक्षक कार्यरत हैं।
- 3465 पूर्व माध्यमिक स्कूलों में 5 शिक्षक, और 1700 स्कूलों में 5 से अधिक शिक्षक हैं।
वहीं दूसरी ओर, कई स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। यह असंतुलन युक्तियुक्तकरण के ज़रिए दूर करने की बात की जा रही है।
सरकार के तर्क:
सरकार का कहना है कि:
- स्कूल बंद नहीं होंगे, केवल प्रशासनिक समायोजन होगा।
- प्राथमिक से उच्चतर स्तर तक एक ही परिसर में समायोजन से संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा।
- अतिशेष शिक्षकों को जरूरतमंद स्कूलों में भेजा जाएगा।
- इससे ड्रॉपआउट दर घटेगी, शिक्षा की निरंतरता बनी रहेगी और स्थापना व्यय कम होगा।
सरकार युक्तियुक्तकरण को संतुलन की प्रक्रिया बता रही है, लेकिन मौजूदा आंकड़े शिक्षकों की भारी कमी और अनुचित तैनाती को उजागर करते हैं। जब तक आवश्यक शिक्षकों की नियुक्ति और संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक केवल समायोजन से शिक्षा की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार मुश्किल है।