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चुनावी मदहोशी या मौत की दस्तक? मुर्गा-दारू पार्टी के बीच बर्ड फ्लू की दहशत!

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बर्ड फ्लू अलर्ट के बीच जानलेवा दावतें! क्या चुनावी लालच लाएगा विनाश?

धमतरी जिले के कुरुद नगर पंचायत में नगरीय निकाय चुनाव का रंग चढ़ते ही चुनावी माहौल गर्म हो गया है। जहां एक ओर प्रदेशभर में बर्ड फ्लू को लेकर अलर्ट जारी किया गया है, वहीं दूसरी ओर प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए धड़ल्ले से मुर्गा-दारू पार्टी आयोजित कर रहे हैं। राजनीतिक दलों की इस लापरवाही से न केवल स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है, बल्कि निष्पक्ष चुनाव पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

चुनावी प्रचार के साथ रोजाना दावतों का दौर

सूत्रों के अनुसार, जैसे ही कुरुद में प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित हुए, प्रचार अभियान तेज हो गया। वार्डों में प्रत्याशी अपने समर्थकों को जोड़ने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दे रहे हैं। इनमें सबसे चर्चित तरीका है—रोजाना शाम को समर्थकों और कार्यकर्ताओं के लिए मुर्गा-दारू की दावत। इस चुनावी सीजन में मजदूर, रिक्शा चालक, साउंड सर्विस और टेंट लगाने वाले लोगों की मांग अचानक बढ़ गई है, जिससे वे अच्छी कमाई कर रहे हैं।

एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई वार्डों में प्रतिदिन चुनाव प्रचार में शामिल लोगों को रात के समय दावत दी जा रही है। चुनावी प्रचार में दिनभर मेहनत करने वाले मजदूरों को रात में मुफ्त शराब और भोजन का प्रलोभन दिया जा रहा है, जिससे वे प्रत्याशियों के प्रति और अधिक निष्ठावान बने रहें।

पार्टीबाजी में कोरोना और बर्ड फ्लू की अनदेखी

प्रदेश में बर्ड फ्लू को लेकर सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन चुनावी माहौल में इन नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा है और न ही मुर्गे के सेवन को लेकर किसी तरह की सतर्कता बरती जा रही है। आम लोग भी स्वास्थ्य जोखिमों को नजरअंदाज कर इन दावतों का भरपूर आनंद उठा रहे हैं।

“अभी कमाई का समय है”

एक महिला जो कांग्रेस की रैली में झंडा उठा रही थी, कुछ घंटे पहले भाजपा के प्रचार में भी शामिल थी। जब इस बारे में पूछा गया तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अभी तो कमाई के दिन हैं, बाद में फिर रोजगार ढूंढना पड़ेगा। आज की रात दो-तीन पार्षदों के प्रचार कार्यक्रम में जाना है, 1200 से 2000 रुपये तक की कमाई हो जाएगी।”

चुनाव प्रचार थमा, लेकिन जोड़-तोड़ जारी

चुनाव प्रचार बंद हो चुका है, लेकिन प्रत्याशी अब कार्यकर्ताओं और समर्थकों को सक्रिय बनाए रखने में जुटे हुए हैं। हर दल ने अपने समर्थकों को विशेष निर्देश दिए हैं कि वे मतदाताओं पर नजर रखें और मतदान के दिन उन्हें बूथ तक पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी लें। कुछ प्रत्याशियों ने निजी स्तर पर ‘विशेष रणनीति’ तैयार की है, जिसमें रातभर कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाए रखना और सुबह जल्दी से जल्दी मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाना शामिल है।

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प्रशासन अलर्ट, निष्पक्ष चुनाव पर सवाल

जहां एक ओर प्रशासन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए पूरी तरह से सतर्क है, वहीं दूसरी ओर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जारी इन प्रलोभनों को रोक पाना मुश्किल साबित हो रहा है। अब देखना यह होगा कि इस चुनावी खेल में जनता की प्राथमिकता क्या होगी—प्रलोभन, पक्षपात या निष्पक्ष मताधिकार का सही इस्तेमाल?

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