Nirma washing powder: एक दौर था जब हर भारतीय घर में वॉशिंग पाउडर का मतलब सिर्फ निरमा था। उसकी सफाई, किफायती कीमत, और मशहूर जिंगल “धूल मिट्टी हटाए, निरमा…” ने उसे घर-घर तक पहुंचाया। सफेद फ्रॉक वाली लड़की की छवि ‘निरमा’ के विज्ञापनों की जान थी। लेकिन, आज बाजार में कभी सबकी पसंदीदा ‘निरमा’ को ढूंढना मुश्किल हो गया है।
इस ऐतिहासिक ब्रांड को खड़ा करने वाले करसनभाई पटेल ने अपनी मेहनत से इसे बुलंदियों तक पहुंचाया। लेकिन एक रणनीतिक चूक और बाजार के बदलते रुख ने ‘निरमा’ को पीछे धकेल दिया।
बेटी की याद में बना ‘निरमा’
करसनभाई पटेल गुजरात के एक किसान परिवार से थे। पढ़ाई के बाद उन्होंने अहमदाबाद में एक लैब टेक्निशियन के तौर पर काम शुरू किया। लेकिन उनकी असली प्रेरणा एक दर्दनाक हादसे से आई।
उनकी छोटी बेटी निरूपमा का बचपन में ही एक दुर्घटना में निधन हो गया। बेटी का नाम दुनिया में अमर करने के लिए उन्होंने अपने डिटर्जेंट पाउडर का नाम ‘निरमा’ रखा। यह भावनात्मक जुड़ाव उनके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य बन गया।
करसनभाई ने अपनी साइकिल पर ‘निरमा’ बेचने से शुरुआत की। किफायती कीमत और प्रभावी सफाई के कारण यह उत्पाद तेजी से लोकप्रिय हुआ। देखते ही देखते ‘निरमा’ भारत के हर घर की पहली पसंद बन गया।
बुलंदियों का सफर
‘निरमा’ की कामयाबी की कहानी असाधारण है। एक सादा लेकिन दमदार मार्केटिंग संदेश—“कपड़े साफ नहीं हुए तो पैसे वापस”—ने ग्राहकों का भरोसा जीता।
उनके विज्ञापन में सफेद फ्रॉक पहने छोटी लड़की और आकर्षक जिंगल ने ब्रांड को अलग पहचान दी। करसनभाई की मार्केटिंग रणनीति अनोखी थी। उन्होंने अपने कर्मचारियों की पत्नियों को दुकानों पर ‘निरमा’ मांगने भेजा, जिससे दुकानदारों को इसकी मांग का अंदाजा हुआ।
2010 तक, ‘निरमा’ ने 60% बाजार पर कब्जा कर लिया था। यह एक ऐसा मुकाम था जिसे देश की बड़ी कंपनियां भी हासिल नहीं कर पाईं।
वह गलती जो भारी पड़ी
‘निरमा’ की चमक तभी फीकी पड़ने लगी जब कंपनी ने मुख्य उत्पाद से ध्यान हटाकर अन्य क्षेत्रों में निवेश शुरू कर दिया। उन्होंने सीमेंट, केमिकल, और शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा, लेकिन इस दौरान वॉशिंग पाउडर को अपडेट करना भूल गए।
सबसे बड़ी गलती विज्ञापन रणनीति में हुई। पारंपरिक महिलाओं को लक्षित करने की बजाय कंपनी ने पुरुषों को विज्ञापनों में दिखाना शुरू किया। अभिनेत्री की जगह अभिनेता ऋतिक रोशन को ब्रांड एंबेसडर बनाना भी सही फैसला नहीं साबित हुआ। इससे कंपनी अपनी सबसे बड़ी उपभोक्ता—गृहिणियों—से दूर हो गई।
बाजार में नई कंपनियों और प्रोडक्ट्स के आगमन ने ‘निरमा’ के लिए चुनौती खड़ी कर दी। ब्रांड, जो कभी सफेदी का प्रतीक था, धीरे-धीरे पीछे छूट गया।
वर्तमान में ‘निरमा’
आज ‘निरमा’ का बाजार में केवल 6% हिस्सा है। हालांकि, ब्रांड की विरासत और करसनभाई पटेल की मेहनत की कहानी आज भी प्रेरणादायक है।
‘निरमा’ का उत्थान और पतन हमें यह सिखाता है कि नवाचार और ग्राहक की नब्ज को समझना किसी भी व्यापार की सफलता के लिए कितना जरूरी है।
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