157 साल में 4 से 6 लाख तक आबादी : जानिए छत्तीसगढ़ में एक चर्च से गांव-गांव तक कैसे पनपा और फैला ईसाई धर्म
रायपुर/विश्रामपुर। छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण को लेकर हाल के दिनों में सामाजिक और राजनीतिक तनाव देखने को मिला है। ननों की गिरफ्तारी से लेकर चर्च में तोड़फोड़ और शव निकालने तक की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि राज्य में ईसाई धर्म की जड़ें कहां से और कैसे पनपीं।
4 से 6 लाख तक कैसे पहुंची आबादी?
छत्तीसगढ़ में ईसाई आबादी का इतिहास 19वीं सदी के अंत से शुरू होता है। 1868 में जर्मन मिशनरी डॉक्टर ऑस्कर थियोडोर लोर ने बलौदाबाजार के विश्रामपुर गांव में पहला चर्च और मिशनरी स्कूल की नींव रखी। 1874 में इम्मानुएल चर्च बनकर तैयार हुआ, जिसके साथ बना कब्रिस्तान आज भी मौजूद है।
शुरुआत में मात्र 4 लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया था। लेकिन 1883 तक यह संख्या 258 पहुंच गई और 1884 में रायपुर, बैतलपुर व परसाभदर में नए मिशन सेंटर और 11 स्कूल खुल चुके थे। आज राज्य में लगभग 900 चर्च हैं और ईसाई आबादी 6 लाख से अधिक आंकी जा रही है।
ईसाई समाज की सेवा से मिला भरोसा
फादर लोर और उनके दोनों बेटों ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी और पिछड़े इलाकों में स्कूल, हॉस्टल और अस्पतालों के ज़रिए बुनियादी ज़रूरतें पूरी कीं। मसीही समाज के अनुसार, जब सरकार और विकास की योजनाएं इन इलाकों तक नहीं पहुंची थीं, तब मिशनरी समाज ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराई।
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धार्मिक टकराव की नई परिस्थितियां
हाल ही में कांकेर में एक ईसाई व्यक्ति की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार विवादों में घिर गया। आरोप है कि भीड़ ने चर्च और घरों में तोड़फोड़ की, कब्र से शव निकालने को मजबूर किया। इसके अलावा दो मिशनरी सिस्टर्स की गिरफ्तारी ने राज्य और केंद्र स्तर पर सियासत गरमा दी है।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल मानते हैं कि जहां सरकारी विकास नहीं पहुंच पाया, वहां ईसाई समाज ने शून्य को भरा। लेकिन जब धार्मिक श्रेष्ठता की भावना हावी होती है, तब टकराव की स्थितियां स्वत: बनती हैं।